Wednesday, August 25, 2010

अथ सरकारी रोजनामचा

स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राजनैतिक परिपेक्छय में सरकारी रोजनामचे का

बिहंगम अवलोकन करने के बाद भईयाजी संतुस्ट दिखे . उनका संतोष अभी मेरी जिज्ञासा बन
कर प्रश्न बनता की मै सावधान हो गया . भला यह भी कोई वक्त है प्रश्नों में सर खपाने का ?
वे संतुस्ट है क्या यही कम है ?मै भी उनकी ख़ुशी में शामिल हो गया .आज पहली बार मतदाताओ
की जागरूकता स्तुत्य लगी. भारतीय मत दाता की क़ुरबानी कम से कम संतुस्ती के मामले तो देश को आत्म
निर्भर कर गयी .संतुस्ट राजनीत देश का भविष्य सुरछित रखेगी ? पानी बह कर निर्मल होता है
राजनीती स्थिर होकर स्वच्छ .
मैंने उचक कर रोजनामचे पर निगाह डाली .रोजनामचे सदा से ही मेरी कमजोरी रहे है
चाहे वे विकाश प्राधिकरण के बाबु सियाबर के हाथ के बने हो या पुलिश बिभाग के अनुभव प्राप्त मुन्सी नारायण
मिशिर के रगड़े हो . भईया जी मेरा इरादा भाप गए .उनके अनुभवों की यही परिपक्वता
सरकार के लिए अंगद का पाव रही है .रोजनामचा मुझे देते हुए वे मुस्कराए
रोजनामचे का पहला आकड़ा ही मुझे तृप्त कर गया . हरिजनों के सदेह अग्निदाह का प्रतिशत आरक्छन में मिली सुबिधाओ .के अनुपात में संतोषप्रद पाया गया .उनके अंतिम संस्कार में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी की बचत शुद्ध लाभ मानी गयी .यदि अग्निदाह के कार्यक्रम का प्रतिशत कुछ अतिरिक्त होता तो अगली पञ्च वर्षीय योजना में इस वर्ग के कृषि और आवास जैसी सुविधाओ के आकड़ो का प्रतिशत और अच्छा होता .
जनसँख्या नियंत्रण में बिपच्छ के नकारात्मक रवैये को देखते हुए माववादी भाईयो
एवं दंगाईयो की भूमिका काफी सराहनीय रही .इस मामले में सरकार को उन लोगो को
विशेष रूप से आभार देना चाहिए जो मानवीय संवेदना को आनर किलिग़ , व भ्रूड हत्त्यायो की आहुति से पवित्र कर रहे है
नारी संरछन संसथान द्वारा प्रेषित सरकारी तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया की नारी को दिए गए अधिकारों और उनके क्रियान्वन की अपेछा शोषण और आत्याचार की संख्या काफी निराशा जनक रही . इस मामले में सासु ननदों का बहूयो को सताने का काम भी ठीक नहीं रहा . यदपि भारतीय पुलिस विभाग नारी को संरछन देने को हर वक्त तैयार है और सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओ में मुख्य भूमिका का बोझ अपने सर पर धरे है पर सिर्फ पुलिस बिभाग के बलबूते पर आकड़ो का भविष्य दाव पर तो नहीं लगाया जा सकता .
महगाई जैसे मुद्दे पर सरकार को कुछ करने की जरुरत नहीं है , यह सब बिपच्छ की चाल है महगाई है ही नहीं , पानी बिजली के लिए भी करना कुछ नहीं है आखिर जनता को भी बोलने के लिए कुछ तो चाहिए? आम आदमी को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए न तो साधन है और न समय .अतः गरीबो के बजाय रेखा को ही थोडा नीचे कर दिया गया है आम आदमी का जीवन स्तर अपने आप ऊपर हो जायगा .
अब सूखे और बाढ़ पर भला किसका जोर है ? भगवान के आगे कब किसकी चली है .कहने को तो लोग कह रहे है की सरकार की मिली भगत से 15 अगस्त रबिवार को आया है . भला यह भी कोई बात है .
अभी कुछ और आंकड़े सार गर्भित टिप्पड़ियो सहित मेरी आत्मा को तृप्त
करते की एक सरकारी अफसर ने रोजनामचा झपट लिया .”सर ये अख़बार वाले
अति गोपनीय जानकारी पचा नहीं पायेगे ?
भईया जी एक बार फिर मुस्कराए . लोक तांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर कसी गयी नीतियों और जन आकंछाओ के अनुरूप सिलाये गए कुरते को पहन कर
उपलब्धियों से सरा बोर उनका ब्याक्तित्त्व सचमुच उर्बरक लगा .अरबो रुपयों का
पार्टी फंड देश बिदेश में नाम . मै श्रधा से नत मस्तक हो गया.फिर न तो मुझे नीतियों की
जानकारी है न सिधान्तो से मेरा कोई वास्ता है. फिर भी मै बे फ़िक्र हु . .राजनीती स्थिर है वे संतुस्ट है . जनता को तो यु भी मरना है बाद में रो लेगे .

राखी मंगल माय हो

राखी का त्यौहार किरण नूतन फूटे

बहनों का सिदुर न कोई आतंकी लुटे

हो दहेज़ की मांग न रिश्ता कोई टूटे

मिल जाये भाई बहन अगर हो रूठे

हर आगन में गूजे बिटिया की किलकारी

महक उठे उपवन जैसी बहनों की क्यारी

कंधो पर डोली भाई के ,बहनों के अरमान खिले

नारी के हर रूप को सदा उचित सम्मान मिले

दुनिया के हर भाई बहन की राखी मंगल मय हो

राखी बांधे बहन भाई जो उनकी सदा विजय हो:

Friday, August 20, 2010

कांह का प्रेम बखानो

ज्ञान कई बात बतावति हौ कछु श्याम कै बात बताओ तो जानी

ज्ञान के चछुन श्याम लखे तुम प्रेम के श्याम लखाव तो मानी

ज्ञान का नीर पियो इतने दिन प्रेम पियूष पियो तो ज्ञानी

ज्ञान कै गाठरी लादी चले एक प्रेम की पाती हाय न आनी

मोछ की आश है श्याम गह्यो अब हु तक श्याम को मर्म न जान्यो
कांह हमार तो भूखो प्रेम को , ज्ञान सो चाहत श्याम रिझानो
बात” रमेश ” सुनो धरि ध्यान ,ये ज्ञान हमार जिया नहीं मानो
उधव ज्ञान दुकान समेटो चलो अब कान्ह का प्रेम बखानो

Tuesday, August 17, 2010

जन जागरण की मशाल और हम

देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रण बाकुरो को नमन करते हुए
यह सोच रहा हु की जिन के लिए आजादी का शंखनाद किया गया था उन्हे क्या मिला .भूख , गरीबी , बीमारी और शोषण ? १८५७ में मंगल पाण्डेय ने गोरी हुकूमत के खिलाफ बिद्रोह की जिस चिगारी को उत्पन्न किया था उसने गोरो के उस साम्राज्य को मटियामेट कर दिया जिसमे सूर्यास्त नहीं होता था . और हत्यारे जनरल डायर के आकाओ को अपना बोरिया बिस्तर समेत कर भागना पड़ा .
यह सही है की हम में से बहुत लोगो ने गोरो की क्रूरता को खुद नहीं भोगा वह भी इस लिए की हमारे पुरखो ने अपने लहू से आजादी का दिया जला कर हमें गुलामी के अंधेरो से दूर कर दिया था .पर उनके बलिदान को क्या हमने अपनी स्वार्थ लिप्सा का आधार नहीं बना लिया .
राजनीतक आकंछाओ के मोह से जकडे सियासत दानो ने देश को प्रान्त , भाषा, जाति , धर्म , आदि न जाने कितने खेमो में बाट दिया . अफसर शाही में जकड़ा विकास भ्रस्टाचार की कोख में पल रहा आम आदमी भविष्य , गुदामो में सड़ रहा अनाज , बन्दरगाहो में सडती दाल, पंगु न्याय पालिका भूखा बचपन , भूखा प्यासा नागरिक ,बेघर लोग और बढती मह्त्वाकंछाओ की भेट चढ़ता आम भारत वासी . गरीबी का माखौल उड़ाती पाच सितारा होटलों के वातनुकूलित कमरों में बनती योजनाये , भला इनका आम आदमी से क्या वास्ता ?
बदहाल सडको पर चीटियों की तरह हादसों में मरते लोगो का यातायात पुलिस के उस हवलदार से क्या रिश्ता जो सौ रूपये के लालच में खुले आम कानून की धज्जिया उड़ा देता है .
अस्पतालों में प्रसव बेदना से तडपती गरीब की बेटी और तास खेलता स्टाफ हर सरकारी ब्लाक और जिले की आम बात है .
हम खुश है की देश आजाद है कम से कम अपनों को अपने ही तो लूट रहे है .केंद्र से मिली राशी को अगर राज्य के मंत्री निज ही ले गए तो किसी का क्या गया ? .
अभी समय रहते अपनी सोच को बदल लेना चाहिए .क्या पता कब दूसरा मंगल पाण्डेय दूसरी आजादी का बिगुल बजा दे .
ख़ुशी की बात है जन जागरण की मशाल को जला दिया gaya है अब हम और आप मिल कर इसको वैचारिक शक्ति दे .
एक बार फिर उन अमर सहिदो को नमन करे जिनके बलिदान का मूल्यांकन अभी होना बाकि है जय हिंद , जय bharat



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Sunday, August 8, 2010

मेरे मन के पाहुना

मेरे मन के पाहुना आजाओ अब पास

मन चहका चहका फिरे मधुर हुई है रात

तारो से कैसा सजा देखो अम्बर आज

बिना तुम्हारे साथ के कैसे हो बरसात

बिन चन्दा के देखो रजनी है कितनी काली

,रूपनगर की राजकुवर बिन मन मेरा है खाली

,

उन आखो को देख ले ये आखे जब साथ

तब तो निदिया आयेगी इन आँखों के पास

प्रिये तुम्हारे अधर जभी कुछ बोलेगे

मनमें मेरे बजगे तभी तो मीठे साज

Wednesday, August 4, 2010

विरासत एक अदद थाने की

भारतीय पुलिस बिभाग पर मेरी अटूट श्रद्धा है पुलिस को देखते ही मेरा ढाचा कमान हो जाता है नहीं समझे ,बिल कुल वेसा जैसा डालर को देख कर बाकि दुनिया का होता है कास मुझे भी बचपन से पुलिस की छांव मिली होती ,अम्मा ने डराया होता ; चुप हो जा नहीं तो पुलिस जाएगी , पर कसूर अम्मा का नहीं पुरखो का है .मुहल्ले में पुलिस होती तब यु तो ऊपर वालो [ भगवन मत समझलेना] की दया से अपने मोहल्ले में जच्चा-बच्चा अस्पताल से लेकर राम लीला कमेटी तक वह सभी कुछ मौजूद है जो एक मोहल्ले में हों चाहिए बस कमी है तो एक अदद थाने की
पडोसी मुहल्ले में होने वाली वारदातों के निवासियों समेत बड़े बड़े फोटो अखबारों में छापते है वहा कभी मंत्री जी दौरा करते कभी पुलिस के बड़े बड़े हाकिम हुक्काम आते है हम दिल मसोस कर रह जाते काश हमारे मोहल्ले में भी ऐसा कुछ होता , वे लोग कही जाते तो फ़ौरन पहचान लिए जाते , आइये आप फला मोहल्ले से आये है इधर हम लाख परिचय दे ,सर पटके कोई पहचानने को ही नहीं तैयार होता किसी दफ्तर में जाते तो साहब का चपरासी ही डांट कर भगा देता .अब तो बताने भी शर्म आती है , जिस मोहल्ले का पुलिस रिकार्ड हो वह भी कोई रहने लायक है मुहल्ले के बच्चे शिकयत करते अंकल हमरे मोहल्ले में पुलिस क्यों नहीं है ?बाजू वाले मोहल्ले के बच्चे अपनी पुलिस के साथ चोर पुलिस खेलते है ,पर हमें नहीं शामिल करते , अब हम यह खेल किसके साथ खेले ? भला इन बातो का जबाब मै क्या देता ?यह सब तो सरकार को सोचना चाहिए
किसी ने सलाह दी बड़े साहब से मिल लो शायद काम बन जय अब सलाह देने वालो का क्या है सलाह दी और
पंजे झाड लिए ,साहब हुए बोफोर्स तोप हो गयी जो हर गली चौराहे मिल गयी तीन महीने सुबह शाम उनकी चौखट पर नाक रगड़ने के बाद उनके दर्शन हुए , उन्होने मुस्करा कर मेरे अभिवादन का जबाब दिया तो मै गद-गद
हो गया मोहल्ले में थाने के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए मैंने कहासर सवाल थाने का नहीं मोहल्ले के भविष्य
का है ,भावी पीढ़ी हमारे बारे में क्या सोचेगी ?कितने निकम्मे थे हमारे पुरखे जो एक अदद थाना भी बिरासत में नहीं सौप सके सर पुलिस के साये तले यदि बच्चे गोली -बन्दूक चलाना ,अफीम चरस ,बेचना पीना सिख गए
तो देर सबेर पुलिस लिस्ट में चढ़ कर माँ-बाप का नाम रोशन कर डालेगे
बड़े साहब मुछो समेत खिलखिलाए पुलिस बिभाग पर आप का प्रेम और बिस्स्वास वाकई काबिले तारीफ है .मै
कोशिश करुगा की आप का मोहल्ला भी तरक्की करे
इस घटना के कुछ दिन बाद ही नियुक्ति पत्रों समेत हवलदार हुकुम सिंह आरछी नारायण चौबे के साथ मोहल्ले में पहुचे . स्वयं सेवको ने मैदान में झंडिया लगा कर तिरपाल
बांधा ,रामलीला कमिटी ने तखत लगा कर उनको बैठाया ,माँ बहनों ने गीत गाकर आरती उतारी ,रोली अछत का टीका लगाया .बच्चो ने शरमा शरमा कर पुलिस को देखा .अब मुझे बिस्वास है कुछ दिन बाद वे भी आपनी पुलिस के साथ चोर पुलिस खेलना सिख जायेगे .
मोहल्ले में पहली चोरी भैस की हुयी तो खुशया मनाई गयी . आज कल इसी तरह के मौको पर लोग खुस होते है मोहल्ले वालो ने मिल कर कलुवा को बधाई दी . लोगो ने भैस की महानता का उसके गुणों का जिक्र किया .वर्मा जी ने भावुक हो कर बताया की
वह कितने प्यार से अपनी पूंछ मेरी पीठ पर फेरती थी . आज भी गोबर की गंध मेरी सांसो में बसी है
कलुवा ने भाव बिभोर होकर बताया की भैस का दूध इतना गाढ़ा होता था की कितना भी पानी मिलाओ मगर क्या मजाल कोई पकड़ ले . पुष्प हरो से लदा कलुआ जब रिपोर्ट दर्ज करने थाने पंहुचा तो उसके बिरोधियो के दिलो में सांप सूंघ गया .हाय हमारे यहाँ क्यों हुयी चोरी ?कलुवा बाजी मार ले गया .
नारियल तोड़ आरछी नारायण चौबे ने रोजनामचे का उदघाटन किया .तहकीकात के अनुभवों से लब्ध हवलदार हुकुम सिंह ने नपे तुले अंदाज में भैस लम्बाई से लेकर सींघो की गोलाई आकर प्रकार का बिस्तार पूर्वक वर्णन नोट किया , कलुवा की जेब को सुंघा और सबको बिदा किया
दुसरे दिन भैस मय चोर थाने में बंधी थी .पांचो की मौजूदगी में उसको रोजनामचे में दाखिल करने के बाद जब भैष की नाप जोख का काम संपन्न हुवा तो हुकुम सिंह चौंके .रिपोर्ट में दर्ज ब्योरे के अनुसार रस्सी की लम्बाई तीन मीटर थी .जबकि बरामद भैस की रस्सी नो इंच बड़ी है इसी प्रकार सिंघो की लम्बाई मिलाने पर चार इंच छोटी निकली .
हुजुर सारा मुहल्ला जनता है की भैस मेरी है कलुवा रिरियाया
हम कहा कहते है की भैस पुलिस की है , कलुवा जी हम तो पुलिस रिकार्ड में दर्ज हुलिए के अनुसार ही काम करेगे .फिर भैस कही भागी तो नहीं जारही है आप के घर बंधी है या यहाँ, आपआराम से इसकीसेवा टहल करिए हा जब तह किकात पूरी नहीं हो जाती दूध मॉल खाने में दर्ज होता रहेगा बाकि रही भैस तो वह आप को मिलेगी ही .
अब मै संतुस्ट हु किसी दिन हमारे मुहल्ले का नाम अख़बार में जरुर छपेगा