Monday, July 12, 2010

आधुनिक नारी के रहस्य


यत्र नार्यस्स्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता का बचपन से ही मै कायल रहा हू पर अम्मा के डाले संस्कारो ने किसी मादा को जी भर कर देखने का अवसर ही कंहा दिया .वे कहती स्त्री जात को दीदे फाड़ कर नहीं देखना चाहिए ,पाप लगता है सो उम्र का तीसरा पन भी आ गया पर रहे ढाक के वही तीन पात .पर इसका मतलब यह नहीं है कि मै सुन्दरियों को देखता ही नहीं हू.सच कहू सब कि नजर बचा ताक तो लेता ही हूँ दिल के बंजर में दो-चार नारिया उछल कूद करती रहे तो किसी का क्या नुकसान होगा .
फिर साहित्य में तो लोग अक्सर तमाम प्रयोग करते है मै क्यों न आधुनिक नारी रहस्य जैसा कुछ लिख डालू .इधर जागरण जंगसन पर ब्लॉग स्टार कि धूम मची है शोध पूरा हो गया तो क्या पता मुकुट मेरे माथे ही सजे ?भावी पीढ़ी को सहूलियत होगी सो अलग .आखिर बिल्व मंगल सुन्दर नारी के फेर में सूरदास बने ,तुलसी बाबा को रत्ना ने रतन बना डाला ,अनपढ़ कालिदास बना ,बाकि के उदहारण आप खुद जोड़ ले .
लपक कर श्रीमती जी के पास पंहुचा .सोचा शुरुवात यही से करू पर ये क्या मेरी बात पूरी हुयी नहीं की वे तो दहाडे मार कर रोने लगी ” अरे मेरे तो करमही फूट गए है अब सौतनभी लाओ गे ? . आज तक तुमने मेरे लिए किया ही क्या है हाय ……मै यह सोच कर .चुप हो गया की जब अखबारों में मेरे बड़े बड़े फोटो छ्पेगे तो खुद समझ जाएगी .
अब मैंने सुन्दरी की तलाश में गली मुहला छान मारा पर काम नहीं बना ,राह चलती सुन्दरियों को आजमाने के क्रम में मुछो की सफेदी ने बेडा गर्क कर दिया किसी पे नजर टिकाई नहीं की फ़ौरन प्रश्न उछला’ चाचाजी कुछ मदद करू ?
उधर जागरण वालो ने बीस लोगो की सूची निकाल कर मेरा हजम ख़राब कर दिया इधर नायिका का पता ही नहीं है भगवानमेरा क्या होगा .? सत्ता की सुन्दरियों को देश से ही फुर्सत नहीं है मेरी मदद क्या खाक करती , पुलिस के नारी प्रेम को देखते हुए
कुछ आशा बंधी की सायद काम हो जाय थाने के मुन्सी मेरे मित्र है सो उनके पास पंहुचा ही था की इधर जागरण की दस का दम की तर्ज पर दूसरी सूची भी आ गयी , मेरी बात सुन कर मुन्सी जी मूछो में मुस्कराए , जानते है पुलिस वालो की यह हसी बहुत प्यारी होती है
और कभी कभी ही देखने को मिलती है पंडित बस समझो तुम्हारा काम हो गया हम तो अच्छो अच्छो से जो चाहते है उगलवा लेते है .,” साहित्य की जानकारी हम को तनी कम है पर इतना तो पता है ही की पहले की सुन्नरिया रात को ..नायक के डेरा पर जाती थी सो आज भी वही होता होगा , आज रात मे धर लेते है किसी को दो मिनट सारे रहस्य उगल देगी आप छाप लेना ”
पर मुंशी जी रात में परायी नारी से वार्तालाप अनुचित है
पुलिस के लिए सब समय ठीक है पर काम तुम्हारे हिसाब से करना होगा हे रे कोई
एक आरछी हाजिर हो गया ” किसी सुन्नरी को जानते हो ”
आरछीने मुझे देखा फिर सर खुजा कर बोला ”जी वो अपनी सतिया है न वही जो अफीम वाले केस में धरी गयी थी हाजिर कर दू फौरन चली आएगी वह थाने आती है तो पचास के काम बकसीस कभी नहीं देती ”
ठीक है हाजिर करो और पंडित के लिए कुछ मीठा नमकीन का इंतजाम करते जाना
मुन्सी जी मेरा कुछ खाने का मन नहीं है पता चला है की वहातीसरा और दूसरा विजेता घोषित कर दिया गया है ”
होने दो न घोसना पहला इनाम तुम्हारा हैऔर ये लो सतिया आ भी गयी
मैंने गौर से उसको देखा गोरा रंग सुतवा नाक काले केश रंग बिरंगे टेटूओ सजी देह अगर आपने जायसी को पढ़ा है तो उसको भी मिला ले ”
मुन्सी जी ने मेरा परिचय करा कर मदद की गुजारिस की
अब उस मृग लोचनी ने अपनी बांकी चितवन का हाहाकारी प्रहार मुझ पर किया तो बरबस मेरे नेत्र बंद हो गए .वह खिलखिला कर हंस पड़ी बोली पंडित जी आप देखिये गा नहीं तो क्या पूछिए गा ? हम सब कुछ बता देगे मगर आप को मेरे घर चलाना होगा

मरता क्या न करता सो उसके साथ गया .मेरी बात सुन कर वह हसी फिर बोली पंडित ब्लॉग पति बनकर क्या होगा तुम मेरे पति बन जावो फिर आराम से लिखना रहस्य .
मै फ़ौरन उठ कर भागा और .अभी भाग ही रहा हूँ हे भगवान कहा फस गया अब
तुम ही कुछ करो, पर आप निराश मत होना , जागरण वालो खबरदार अभी प्रथम विजेता की घोषणा मत करना आधुनिक नारी रहस्य पूरा कर ही दम लुगा

, [मुंशीजी का कुछ शब्ब्दो को बोलने का आपना तरीका है

Monday, July 5, 2010

लोहे की रेल लोहे के दिल


भारतीय रेल का खेल बचपन से ही मुझे बहुत अच्छा लगता है तब .हम मे से कोई इंजन बन जाता और बाकि डिब्बा बन कर उसमे लग जाते फिर जो उधम मस्ती होती उसका कहना क्या ?रेल की यात्रा का आपना मजा तो आज भी है सब कुछ बदल गया है पर रेल का खेल वही अंग्रेजो के जमाने का ही है लोहे की रेल लोहे के दिलो से छुक छुका रही है .
लालू जी की रेल का अपना रुतबा था दीदी की रेल अपनेतरीके सेभाग रही है रही यात्रियों की बात तो वे बेचारे तो सदा से उपरवाले के भरोसे ही रहे है सो आज भी उसी तरह जान हथेली पर धरे चलते है झारखण्ड बंगाल व् बिहार की रेल यात्रा नक्सली भाइयो की किरपा पर है .उनकी इच्छा होगी तोही यात्री घर वापस होगा .कोंन ट्रेन कब चलेगी औरकहा रुकेगी किसी को पता नहीं ?
खैर मै कह रहा था की रेल तो लोहे की बनी होती है इस लिए इसकी यात्रा भी लोहा बन कर ही होती है रेल वाले तो खैर यात्रियों को लोहा ही मानते आये है आप ने स्टेशन परिसर मे प्रवेश किया नहीं की लोहे मे तब्ब्दिल हो गए .
मै कल अपने बेटे को ट्रेन मे बिठानेगया था पहेले चार्ट मे बोगी की पोजीसन खोजने का प्रयास किया फिर पूछताछ वालो से रिरियाया परनतीजा सिफ़र. मन मार कर प्लेटफ़ॉर्म पर आया की मॉडल स्टेशन के ख़िताब से नवाजा गया स्टेशन बोगी की स्थिति को बता ही देगा पर नहीं, रेल गाड़ी के आने की सुचना भर दी गयी .
एक बुजुर्ग दम्पति हर किसी से” वातानुकूलित बोगी आगे है की पीछे लगी है” की रट लगा रहे थे और लोग जबाब मे “ट्रेन आने पर पता चलेगा ” कह कर पल्ला झाड़ रहे थे . मैंने उन्हें तस्सली देने की कोसिस की तो बोले आप लोग तो भाग कर भी बोगी में बैठ जायेगे पर हम तो ऐसा नहीं कर पायेगे .कोच नंबर डिस्प्ले का बोर्ड लटकाया है इन लोगो ने आखिर किस लिए ? मित्रो जबाब तो मेरे पास नहीं था पर उनकी मदद तो कर ही सकता था ट्रेन के नौ डिब्बो को पर कर उनको सीट पर पंहुचा कर मैंने बेटे को उसकी बोगी मे बैठाया .यह बात किसी एक स्टेशन की नहीं है यह अक्क्सर हर स्टेशन पर लोगो के साथ घटने वाली आम बात है कई बारगाड़ी आने के ऐन वक़्त प्लेटफ़ॉर्म बदल दिया जाता है जो छोटे बच्चो के साथ यात्रा करने वालो व बुजुर्गो के लिए जोखिम
भरा साबित होता है पर इन लोहे के दिल वालो को इतना सोचने की जरुरत क्या है?
बोगी में पानी नहीं है तो क्या? इनको पानी की जरुरत समझ ने की क्या पड़ी है ?पानी बेकार में बहा देगे पर यात्रियों को नहीं मिलेगा .
रेल यात्रा में अगर आप का पाला हिजड़ो से नहींपड़ातोआपयक़ीननखुदकोभाग्यसाली
मान सकते है