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अथ सरकारी रोजनामचा
स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राजनैतिक परिपेक्छय में सरकारी रोजनामचे का
बिहंगम अवलोकन करने के बाद भईयाजी संतुस्ट दिखे . उनका संतोष अभी मेरी जिज्ञासा बन
कर प्रश्न बनता की मै सावधान हो गया . भला यह भी कोई वक्त है प्रश्नों में सर खपाने का ?
वे संतुस्ट है क्या यही कम है ?मै भी उनकी ख़ुशी में शामिल हो गया .आज पहली बार मतदाताओ
की जागरूकता स्तुत्य लगी. भारतीय मत दाता की क़ुरबानी कम से कम संतुस्ती के मामले तो देश को आत्म
निर्भर कर गयी .संतुस्ट राजनीत देश का भविष्य सुरछित रखेगी ? पानी बह कर निर्मल होता है
राजनीती स्थिर होकर स्वच्छ .
मैंने उचक कर रोजनामचे पर निगाह डाली .रोजनामचे सदा से ही मेरी कमजोरी रहे है
चाहे वे विकाश प्राधिकरण के बाबु सियाबर के हाथ के बने हो या पुलिश बिभाग के अनुभव प्राप्त मुन्सी नारायण
मिशिर के रगड़े हो . भईया जी मेरा इरादा भाप गए .उनके अनुभवों की यही परिपक्वता
सरकार के लिए अंगद का पाव रही है .रोजनामचा मुझे देते हुए वे मुस्कराए
रोजनामचे का पहला आकड़ा ही मुझे तृप्त कर गया . हरिजनों के सदेह अग्निदाह का प्रतिशत आरक्छन में मिली सुबिधाओ .के अनुपात में संतोषप्रद पाया गया .उनके अंतिम संस्कार में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी की बचत शुद्ध लाभ मानी गयी .यदि अग्निदाह के कार्यक्रम का प्रतिशत कुछ अतिरिक्त होता तो अगली पञ्च वर्षीय योजना में इस वर्ग के कृषि और आवास जैसी सुविधाओ के आकड़ो का प्रतिशत और अच्छा होता .
जनसँख्या नियंत्रण में बिपच्छ के नकारात्मक रवैये को देखते हुए माववादी भाईयो
एवं दंगाईयो की भूमिका काफी सराहनीय रही .इस मामले में सरकार को उन लोगो को
विशेष रूप से आभार देना चाहिए जो मानवीय संवेदना को आनर किलिग़ , व भ्रूड हत्त्यायो की आहुति से पवित्र कर रहे है
नारी संरछन संसथान द्वारा प्रेषित सरकारी तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया की नारी को दिए गए अधिकारों और उनके क्रियान्वन की अपेछा शोषण और आत्याचार की संख्या काफी निराशा जनक रही . इस मामले में सासु ननदों का बहूयो को सताने का काम भी ठीक नहीं रहा . यदपि भारतीय पुलिस विभाग नारी को संरछन देने को हर वक्त तैयार है और सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओ में मुख्य भूमिका का बोझ अपने सर पर धरे है पर सिर्फ पुलिस बिभाग के बलबूते पर आकड़ो का भविष्य दाव पर तो नहीं लगाया जा सकता .
महगाई जैसे मुद्दे पर सरकार को कुछ करने की जरुरत नहीं है , यह सब बिपच्छ की चाल है महगाई है ही नहीं , पानी बिजली के लिए भी करना कुछ नहीं है आखिर जनता को भी बोलने के लिए कुछ तो चाहिए? आम आदमी को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए न तो साधन है और न समय .अतः गरीबो के बजाय रेखा को ही थोडा नीचे कर दिया गया है आम आदमी का जीवन स्तर अपने आप ऊपर हो जायगा .
अब सूखे और बाढ़ पर भला किसका जोर है ? भगवान के आगे कब किसकी चली है .कहने को तो लोग कह रहे है की सरकार की मिली भगत से 15 अगस्त रबिवार को आया है . भला यह भी कोई बात है .
अभी कुछ और आंकड़े सार गर्भित टिप्पड़ियो सहित मेरी आत्मा को तृप्त
करते की एक सरकारी अफसर ने रोजनामचा झपट लिया .”सर ये अख़बार वाले
अति गोपनीय जानकारी पचा नहीं पायेगे ?
भईया जी एक बार फिर मुस्कराए . लोक तांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर कसी गयी नीतियों और जन आकंछाओ के अनुरूप सिलाये गए कुरते को पहन कर
उपलब्धियों से सरा बोर उनका ब्याक्तित्त्व सचमुच उर्बरक लगा .अरबो रुपयों का
पार्टी फंड देश बिदेश में नाम . मै श्रधा से नत मस्तक हो गया.फिर न तो मुझे नीतियों की जानकारी है न सिधान्तो से मेरा कोई वास्ता है. फिर भी मै बे फ़िक्र हु . .राजनीती स्थिर है वे संतुस्ट है . जनता को तो यु भी मरना है बाद में रो लेगे .
Bahut Bahdiya
ReplyDeleteAchha Lekh