तुम्हारे रूप की चर्चा हमारे गाव मे
हाय बिधना ने इन्हे कैसे बनाया
रूप का बैभव इन्ही पर है लुटाया
चांदनी से होड़ लेती ये दंतवालिया
ओठ है या कमल की पंखुड़िया
सीप सी आखे पलक की काली बरोनी
है आख का जादू या चितवन मोहिनी
मशुमियत को सखी मै क्या कहू
आ गई है ये हमारे गाव
बुलबुले चहकी कोयलों ने गीत गाये
खिल उठी कालिया की भवरे मुस्कराए
तितलिय सजने लगी आ गई रानी परी
और खुस हो चमेली फूल बरसाने लगी
मोर नाचा झूम कर हिरनी कुलाचे भरने लगी
बाग मे चलने लगे जब तुम्हारे पाव
Friday, June 4, 2010
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