Tuesday, August 17, 2010

जन जागरण की मशाल और हम

देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रण बाकुरो को नमन करते हुए
यह सोच रहा हु की जिन के लिए आजादी का शंखनाद किया गया था उन्हे क्या मिला .भूख , गरीबी , बीमारी और शोषण ? १८५७ में मंगल पाण्डेय ने गोरी हुकूमत के खिलाफ बिद्रोह की जिस चिगारी को उत्पन्न किया था उसने गोरो के उस साम्राज्य को मटियामेट कर दिया जिसमे सूर्यास्त नहीं होता था . और हत्यारे जनरल डायर के आकाओ को अपना बोरिया बिस्तर समेत कर भागना पड़ा .
यह सही है की हम में से बहुत लोगो ने गोरो की क्रूरता को खुद नहीं भोगा वह भी इस लिए की हमारे पुरखो ने अपने लहू से आजादी का दिया जला कर हमें गुलामी के अंधेरो से दूर कर दिया था .पर उनके बलिदान को क्या हमने अपनी स्वार्थ लिप्सा का आधार नहीं बना लिया .
राजनीतक आकंछाओ के मोह से जकडे सियासत दानो ने देश को प्रान्त , भाषा, जाति , धर्म , आदि न जाने कितने खेमो में बाट दिया . अफसर शाही में जकड़ा विकास भ्रस्टाचार की कोख में पल रहा आम आदमी भविष्य , गुदामो में सड़ रहा अनाज , बन्दरगाहो में सडती दाल, पंगु न्याय पालिका भूखा बचपन , भूखा प्यासा नागरिक ,बेघर लोग और बढती मह्त्वाकंछाओ की भेट चढ़ता आम भारत वासी . गरीबी का माखौल उड़ाती पाच सितारा होटलों के वातनुकूलित कमरों में बनती योजनाये , भला इनका आम आदमी से क्या वास्ता ?
बदहाल सडको पर चीटियों की तरह हादसों में मरते लोगो का यातायात पुलिस के उस हवलदार से क्या रिश्ता जो सौ रूपये के लालच में खुले आम कानून की धज्जिया उड़ा देता है .
अस्पतालों में प्रसव बेदना से तडपती गरीब की बेटी और तास खेलता स्टाफ हर सरकारी ब्लाक और जिले की आम बात है .
हम खुश है की देश आजाद है कम से कम अपनों को अपने ही तो लूट रहे है .केंद्र से मिली राशी को अगर राज्य के मंत्री निज ही ले गए तो किसी का क्या गया ? .
अभी समय रहते अपनी सोच को बदल लेना चाहिए .क्या पता कब दूसरा मंगल पाण्डेय दूसरी आजादी का बिगुल बजा दे .
ख़ुशी की बात है जन जागरण की मशाल को जला दिया gaya है अब हम और आप मिल कर इसको वैचारिक शक्ति दे .
एक बार फिर उन अमर सहिदो को नमन करे जिनके बलिदान का मूल्यांकन अभी होना बाकि है जय हिंद , जय bharat



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