Sunday, August 8, 2010

मेरे मन के पाहुना

मेरे मन के पाहुना आजाओ अब पास

मन चहका चहका फिरे मधुर हुई है रात

तारो से कैसा सजा देखो अम्बर आज

बिना तुम्हारे साथ के कैसे हो बरसात

बिन चन्दा के देखो रजनी है कितनी काली

,रूपनगर की राजकुवर बिन मन मेरा है खाली

,

उन आखो को देख ले ये आखे जब साथ

तब तो निदिया आयेगी इन आँखों के पास

प्रिये तुम्हारे अधर जभी कुछ बोलेगे

मनमें मेरे बजगे तभी तो मीठे साज

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