मेरे मन के पाहुना
मेरे मन के पाहुना आजाओ अब पास
मन चहका चहका फिरे मधुर हुई है रात
तारो से कैसा सजा देखो अम्बर आज
बिना तुम्हारे साथ के कैसे हो बरसात
बिन चन्दा के देखो रजनी है कितनी काली
,रूपनगर की राजकुवर बिन मन मेरा है खाली
,
उन आखो को देख ले ये आखे जब साथ
तब तो निदिया आयेगी इन आँखों के पास
प्रिये तुम्हारे अधर जभी कुछ बोलेगे
मनमें मेरे बजगे तभी तो मीठे साज
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