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कांह का प्रेम बखानो
ज्ञान कई बात बतावति हौ कछु श्याम कै बात बताओ तो जानी
ज्ञान के चछुन श्याम लखे तुम प्रेम के श्याम लखाव तो मानी
ज्ञान का नीर पियो इतने दिन प्रेम पियूष पियो तो ज्ञानी
ज्ञान कै गाठरी लादी चले एक प्रेम की पाती हाय न आनी
मोछ की आश है श्याम गह्यो अब हु तक श्याम को मर्म न जान्यो
कांह हमार तो भूखो प्रेम को , ज्ञान सो चाहत श्याम रिझानो
बात” रमेश ” सुनो धरि ध्यान ,ये ज्ञान हमार जिया नहीं मानो
उधव ज्ञान दुकान समेटो चलो अब कान्ह का प्रेम बखानो
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